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Showing posts from October, 2021

मन को कुविचारों और दूर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए आवश्यक है अखण्ड जप- धर्मनाथ झा

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 परम पूज्य गुरुदेव एवं माँ गायत्री के सुक्ष्म संरक्षण में खुटौना प्रखण्ड स्थित लौकहा गाँव के मधुबनी जिला समन्वयक आदरणीय श्री संपत कुमार कलंत्री के आवास पर 24 घंटे का अखण्ड गायत्री महामंत्र जप कार्यक्रम का संकल्प 24 अक्टूबर को मधुबनी जिला के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में से एक श्री दशरथ प्रसाद चौधरी ने करवाया एवं अखण्ड जप का पूर्णाहुति पांच कुण्डीय गायत्री महाज्ञ से हुआ ।                              उपरोक्त पूर्णाहुति के कार्यक्रम का टोली नायक एवं मुख्य आचार्य हम सबके मार्गदर्शक परम श्रद्धेय श्री धर्मनाथ झा बाबुजी, उप आचार्य मधुबनी शक्तिपीठ परिव्राजक श्री सुबोध शास्त्री के द्वारा हुआ।                                उक्त कार्यक्रम में मधुबनी जिला के निम्न सभी स्थानों का परिजनों ने अपना अहम योगदान दिया।  डुबरबोना, लौकहा, खुटौना, जयनगर, बेन्नीपट्टी, अरेर, झंझारपुर, लदनियां, आंधराठाढी, धवही, नरहिया, लौकही, मधुबनी,बौरहा एवं नेपाल के अन...

भक्तों को समस्त रोग-शोक से मुक्ति प्रदान करती है माँ कुष्मांडा- सुबोध शास्त्री

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  जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। गायत्री शक्तिपीठ परिव्राजक सुबोध शास्त्री के अनुसार माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। ...

मन को अलौकिक शांति प्रदान करती है माँ चंद्रघंटा- सुबोध शास्त्री।

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नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है। इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंदंमा विराजमान है इसीलिये इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और ये खड्ग आदि विभिन्न अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं।गायत्री शक्तिपीठ परिव्राजक सुबोध शास्त्री का ऐसा मानना है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है। आज शहर के गायत्री शक्तिपीठ लहेरियागंज मधुबनी में परिव्राजकों ने मिलकर माँ की आराधना की, वही शास्त्री जी 09 अक्टूबर से 13 अक्टूबर तक मौन साधना में रह कर माता की पूजा अर्चना करेंगे।